प्रस्तावना:
कठपुतली यह एक मनोरंजन का साधन हैं | प्राचीन काल में भी कठपुतली का खेल दिखाया जाता था | कठपुतली यह एक कला हैं | इस कठपुतली के द्वारा लोगों में कोई भी जानकारी और संदेश पहुँचाने का कार्य किआ जाता था |
लेकिन यह मनमोहक कला आज भारत देश के साथ – साथ एनी विदेशों में भी सबसे लोकप्रिय होने लगी हैं | आज एक युग में कठपुतली फिल्मों और टेलीविजन पर भी प्रसिद्ध हो रही हैं | जो लोग कठपुतली का खेल दिखाते हैं, उन्हें ‘कठपुतली कलाकार’ और ‘पपेटियर’ कहाँ जाता हैं |
कठपुतली शब्द का अर्थ –
कठपुतली यह शब्द पुत्तलिका के संस्कृत शब्द से बना हुआ हैं | पुत्तिका और लैटिन शब्द प्यूपा से मिलकर बना हैं | जिसका अर्थ होता हैं की – छोटी गुडिया |
इस कठपुतली कला का जन्म हमारे भारत देश में हुआ था | विक्रमादित्य के कहानियां में ‘सिंहासन बत्तीसी’ में ‘बत्तीस कठपुतलीयों’ का वर्णन किया हैं |
कठपुतली की कहानी
प्राचीन कथाओं के अनुसार यह ४०० ईसा पूर्व संस्कृत व्याकरण के जनक पाणिनि के सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ में अष्टाध्यायी में इसका उल्लेख ( पुतला नाटक ) में किया हुआ हैं | ऐसा कहा जाता हैं की, भगवान शंकर जी ने रूठी हुई देवी को मनाने के लिए लकड़ी की एक आकृति बनाई |
कठपुतली की रचना
कठपुतली यह छोटे – छोटे लकड़ी के टुकड़ों, पेपर और रंग – बिरंगी कपड़ों से तैयार की जाती हैं | यह कठपुतलीयां गुड़ियों की तरह लगती हैं | यह धागों से बंधी होती हैं |
यह निर्जीव स्वरुप की होती हैं | लेकिन जब इनके द्वारा प्रदर्शन किया जाता हैं, तब ऐसा लगता हैं की, कोई सजीव अपनी कला का प्रदर्शन दे रहा हैं |
इस कठपुतली के माध्यम से गाँव – गाँव में जाकर दहेज़ प्रथा, नशाखोरी, बालिका शिक्षा इ कार्यक्रमों के द्वारा वो सबही लोगों तक संदेश पहुँचाने का कार्य करती हैं |
कठपुतली कला का विकास
कठपुतली कलाकार पहले ज़माने में गाँव – गाँव में घूमते थे और विभिन्न कहानियों के नाटक दिखाकर अपना गुजरा करते थे | इस कला का विसर पुरे भारत देश में हो गया | अंग्रेज सरकार के कारण यह कला विदेशों भी पहुँच गयी | आज यह कला जापान, चीन, रूस, इंग्लैंड, अमेरिका, जावा, श्रीलंका इ में पहुँच चुकी हैं |
राजस्थान का प्रमुख खेल
कठपुतली यह कला राजस्थान का सबसे प्रमुख खेल माना जाता हैं | आज इसके माध्यम से गाँव में जाकर योजनाओं का प्रचार किया जा रहा हैं | सभी लोगों को दहेज़ प्रथा के बारे में बताया जाता हैं और उन्हें जागरूक किया जाता हैं |
राजस्थान के भाट जाती के लोग कठपुतलीयों को बनाकर इसके द्वारा नाटक प्रयोग सदर करते हैं | इस खेल को दिखाते समय गीत भी गया जाता हैं | कठपुतली के कलाकार इसे रंगों से सजाते हैं और वस्त्र पहनते हैं |
निष्कर्ष:
कठपुतली यह एक बहुत ही सुंदर कला हैं | इस कठपुतली के द्वारा लोगों तक संदेश पहुँचाने का कार्य किया जाता हैं | इस कला के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता हैं | इसलिए पुरे देश में २१ मार्च को विश्व कठपुतली दिवस के रूप में मनाया जाता हैं |