प्रस्तावना :
भारत देश युगों-युगों से तथा प्राचीन काल से ही बहुत प्रचलित रहा हैं | और जहाँ तक हमें ज्ञात है की, परोपकार से बढ़ कर हमारे देश में कोई धर्म नहीं हैं |
परोपकार हमारे भीतर बसा हुआ एक ऐसा गुण है जो की ईश्वर का दिया हुआ वरदान के समान हैं| जिस प्रकार से हम किसी की मदद / सहायता करते है, और बदलें में उसे किसी भी वस्तु तथा चीज़ की अपेक्षा नहीं करते है|
ठीक उसी प्रकार से पेड़ पौधे तथा प्रकृति भी हमें हमारे जीवन को कुशल मंगल बनाने के लिए हमारी सभी संभव प्रकार से सहायता करती है, और बदले में हमसे कोई भी चीज़ या वस्तु की अपेक्षा नहीं करता हैं |
परोपकार का अर्थ
परोपकार का सामान्य शब्दों में अर्थ होता है- पर+उपकार और यह परोपकार मानव जाती का सर्वश्रेष्ठ धर्म होता है, और परोपकार को हम आज के आधुनिक समय में सहायता कहते हैं |
ईश्वर ने मनुष्यों में परोपकर की भावना इसलिए समावेश किया था, क्योंकी एक मात्र परोपकार ही हैं, जो मनुष्यों को उनके स्वभाव से पशुओं से भिन्न रखता हैं|
परोपकार पर कथा
मान्यता है, की प्राचीन काल में एक दघीचि नामक एक ऋषि हुआ करते थे, इन्होने तो दान में मांगने पर अपने मृत शरीर की अस्थियाँ तक दें दिया था, तथा एक कबूतर के लियें महाराज शिवी ने अपने हाथ तक काट कर दे दिया था|
भारत जैसे सांस्कृतिक देश में ऐसे अनेक महावीर तथा महान ऋषि हुयें जो परोपकार तथा जन-कल्याण के लिए अपनी जीवन का बलिदान तक दे दिया था |
मानवता का उद्देश्य

मानव जीवन के कुछ विशेष उद्देश्य हैं, जो की ईश्वर ने उपदेश दिए हैं | उपदेश यह हैं की, यदि कोई भी व्यक्ति असहाय हो तो उसकी सर्वप्रथम सहायता करो| हमारे समाज में जो भी गरीबो की मदद करता हैं|
तथा असहाय लोगों की मदद करता है, वही सही में मनुष्य होता हैं| किंतु आज के समाज का तो यह स्लोगन बना हुआ हैं, की खाओ पीओ और आराम करो किंतु यदि ऐसा सभी मनुष्य करने लगें |
तब यह समझ लों की जब कभी भी आपके कोई परिवार का सदस्य समाज में परेशानी की स्थिति में होगा, तब फिर कोई समाज का ही आदमी केवल अपनी सोचता रहेगा| और उसे अनदेखा कर देगा, जो की उचित नहीं हैं |
निष्कर्ष :
परोपकार का मानव जीवन में एक बहुत ही अहम् भूमिका निभाता हैं| आज भ्रष्टाचार के समाज में परोपकार का कोई भी महत्व नहीं हैं, हमारे समाज में आज ऐसा माहोल हो गया है, की बच्चे को भी कोई भी अपने स्वार्थ के बिना भिंक तक नहीं देता हैं, और परोपकार तो बहुत दूर की बात हैं|
हमें अपने समाझ में परोपकार की भावना से यदि परिवर्तन देखना चाहते है, तो सर्वप्रथम हमें स्वयं में ही परिवर्तन करना होगा |
हाँ कुछ लोग कहेंगे की यह क्या पागल पन किंतु यही पागल पन से यदि किसी का भला होता हैं, तो हमें यह प्रारंभ कर देना चाहिए |
अतः हम यदि दुसरे के प्रति जीवन व्यतीत करने लगे तो समझ लेना की परोपकार वही से प्रारंभ होता हैं|