प्रस्तावना :
माँ शब्द हमें हमारे जन्म से ही ज्ञात हो जाता है| यह शब्द अपने आप में स्वयं ही महत्वपूर्ण होता है | हम प्रत्येक वस्तु तथा भौतिक संसाधनों की परिभाषा बता सकते है, किंतु माता शब्द का कोई भी परिभाषा नहीं होता है|
क्योंकि यह अत्यंत अनमोल है, अतः यदि माता न होती तो यह संसार भी नहीं होता | यही कारण है, की प्रत्येक व्यक्ति अपने माता के प्रति ज्यादा ही लगाव होता है |
माँ का सम्पूर्ण जीवन
माँ अपने जीवन में न जाने कितने कष्टों का सामना करती है, जिससे हमें कोई कष्ट ना हो पाए| और हम सोचते है की मेरी माँ मुझसे प्रेम नहीं करती किंतु उस माँ का अपने संतान के प्रति कितना प्रेम होता है|
यह साफ तौर पर समझ जाना चाहिये जब वह असहनीय शारीरिक पीड़ा के बावजूद अपने संतान को जन्म देती है | सर्वप्रथम माँ अपने संतान को जन्म देती है और उसके बाद अपने सम्पूर्ण कष्टों को भूल कर अपने संतान का लालन-पालन करने में जुट जाती है |
और फिर स्वयं भोजन न करके सर्वप्रथम संतान का भरण पोषण करती है, हम इन सब माता के त्यागो के बाद भी यही कथन दोहराते है की, मेरी माँ मुझसे प्रेम नहीं करती हैं|
माँ एक ईश्वर का भव्य रूप
हम विदेशों की संस्कृति तो नहीं जानते है किंतु अपने भारत देश की संस्कृति सम्पूर्ण रूप से ज्ञात है| अतः भारत देश की संस्कृति में माँ को ईश्वर का ही एक भव्य रूप माना गया है |
जो हमारे सम्पूर्ण कष्टों को स्वयं लेकर हमें प्रेम से बहलाती तथा फुसलाती है, एक माँ ही होती है जो हमें दुलार प्यार से सर पे बिठाती है तथा उचित समय आने पर हमें श्रेष्ठ बनाने के लिये प्रेरित करी हैं |
जिस प्रकार ईश्वर हमारी सम्पूर्ण कष्टों का निवारण करता है और हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमेशा से भक्तो की सहायता करते है उसी प्रकार एक माँ अपना पेट काट कर अपने संतान को पहले भोजन कराती है|
और बदले में हमसे कुछ भी मांग नहीं करती जब की हम हमेशा अपनी माता से कुछ न कुछ दिन भर मांग कर परेशान कर देते है | और मांगे भी कैसे “माँ हृदय विशाल समुन्दर से भी भव्य होता है”
माँ के प्रति आज का सामाजिक व्यवहार
आज हमारे समाज में एसे न जाने कितने लोग है जो अपने माता-पिता को एक समय के बाद अपने से दूर वृद्धाश्रम में छोड़ आते है|
कारण की उन्हें एक समय के बाद अपने मात-पिता से बहुत कष्ट होने लगता है किंतु ऐसे न जाने कितने कष्ट एक माँ अपने संतान को जन्म देते हुए स्वयं असहनीय पीड़ा को सहन करती है |
और अपनी सम्पूर्ण जीवन अपने संतान की लालन पालन में ही गुजारती है और स्वयं भूखी रह कर अपने बच्चो का पेट भर्ती है| और आज के समाज में अपने माँ को देखकर जलता है और इस जलन से वे उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आते है हमें तो एसे सोच पर शर्म आती है |
निष्कर्ष :
प्रत्यक व्यक्ति के जीवन में अपने माँ शब्द का बहुत महत्व रहा है| अतः हमें अपने माता-पिता का सम्मान करते हुए उन्हें सर्वश्रेष्ठ रखना चाहिये|