प्रस्तावना:
सदियों से प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में माँ शब्द का बड़ा ही महत्व रहा है, माता यह शब्द स्नेह से परिपूर्ण होता है | वैसे मेरे माँ का नाम आशा देवी है | पिताजी का नाम मोहन है, मेरी माँ मुझसे बहुत स्नेह करती है जिसके कारण मुझे अपनी माता से अति प्रेम रहता है | माँ शब्द का वर्णन शब्द के दम पर उल्लेख करना संभव ही नहीं हैं |
माता द्वारा दिया गया शिक्षा
हमने सदियों से पाया है, प्रत्येक घरों में पिता रोजी रोटी के लिए घर से बाहर निकल जाते हैं और कड़ी मेहनत के बाद हमारे लिए धन जुटा पाते हैं | जिससे हमारा जीवन कुशलता पूर्वक निर्वाह हो सके | किंतु माँ दिन भर अपने पूरे कामों को निपटा कर अपने बच्चों की देखरेख करते हुए एक निश्चित समय के बाद घर में ही अपने बच्चों को ज्ञान देने की कार्य आरंभ करती है|
यह ज्ञान स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता ना ही महाविद्यालय में सिखाया जाता हैं | उस ज्ञान को हम संस्कार कहते हैं | संस्कार हमें अपने माता-पिता द्वारा ही प्राप्त होता है, जबकि हमें कोई दूसरा प्रदान नहीं कर सकता | यही कारण है, की समाज में यदि कोई गलती हम कर देते हैं तो हमारे माता-पिता को सीधे दोषी ठहराये जाते हैं की लगता हैं इसके माता-पिता ने इसे संस्कार ही नहीं दिए |
आज का समाज का अपने माता-पिता के प्रति व्यवहार
एक शोध में यह पाया गया हैं, की जिन घरों में माता-पिता कार्य करने में सक्षम नहीं होते तो आधुनिक युग के संतान उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं | जिसके कारण वह दूर होकर अपने बच्चों की याद में तड़पते रहते हैं, और वही संतान अपने बीवी बच्चों के साथ खुश रहते हैं, किंतु यह उचित नहीं है|
माता-पिता हमें जन्म देते हैं, और हम उनके कर्जदार रहते हैं | और वह कर्ज हम कभी अपने सम्पूर्ण जीवन में अदा नहीं कर सकते, माँ अपने संतानों की देखरेख में तथा मोह में इतना ज्यादा लीन रहती है|
कि वह अपनी सेहत का भी ध्यान नहीं रख पाती हैं, और उन्हें तकलीफ हो जाती है | किंतु वे अपनी तकलीफ भी बयां नहीं करती | और आज के समाज में आधुनिक युग के बच्चे बखूबी रूप से अपने माता-पिता का सेवा करते हैं, जब बूढ़े माता-पिता को अपने बच्चों की अति आवश्यता होती है | तो वही संतान अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं |
माँ का महत्व
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में माँ का होना अति आवश्यक है, तथा जीवन के चलने के लिए हमे सही मार्ग का चयन भी माँ ही कराती है, क्योंकि आज के समय में कोई भी किसी के लिए मुफ्त में कुछ नहीं करता मुझे आज भी वह दिन याद है |
जब मैं बचपन में विद्यालय जाने के लिए रोया करता था तो मेरी माँ मुझे चॉकलेट देकर दिलासा देती थी |
निष्कर्ष:
शिक्षा और संस्कार यह सब हमें सर्वप्रथम अपने घर से ही प्राप्त होता है | जिस पर हम कभी ध्यान ही नहीं देते | आज हमारे समाज में केवल उँगलियों पर गिनने भर के ही संस्कारी पुत्र-पुत्री रह गये हैं |