प्रस्तावना :
हमारे भारत देश के लोकप्रिय नारा जय जवान जय किसान जो हमारे विजय का नारा है | इस नारे के रचयिता लाल बहादुर शास्त्री जी थे | यह नारा राष्ट्रिय एकता का मूलतंत्र है | जय जवान जय किसान का यह नारा जिसका भारत देश में विशेष महत्व है |
शास्त्री जी ने यह नारा १९६५ में भारत और पकिस्तान के युद्ध के दौरान दिया था | जब वह तत्कालीन प्रधानमंत्री थे | इस नारे को देश का राष्ट्रिय नारा भी कहा जाता है | इस नारे के शब्द को गौर करें तब मालूम पड़ेगा की यह नारा किस भाव से दिया गया है |
यह नारा शरहद पर खड़े जवानों और खेत में काम करने वाले किसानों के अटूट परिश्रम एवं म्हणत को दर्शाता है | जय जवान जय किसान का यह नारा लाल बहादुर शास्त्री जी ने एक पब्लिक रैली के दौरान दिया था जो की रामलीला मैदान में आयोजित थी |
उस दौरान भीषण युद्ध एवं भुखमरी चरम पर थी, शास्त्री जी ने देशवासियों को जोश में लाने के लिए तथा प्रोत्साहन के लिए यह नारा लगाया और उनके साथ हुंकार भी भरी थी | इस नारे के शब्दों में देश भर की जनता में ख़ुशी और आत्मविश्वास भरा था | ताकि आने वाली किसी भी परेशानियों का डटकर सामना कर सकें |
शरहद पर खड़ा एक सेना का जवान अपनी जान की बाजी लगाकर हमारी रक्षा करता है | उस जवान का देश प्रेम निश्छल है, अमर है | सैनिक अपना घर-परिवार छोड़कर अपने देश की रक्षा करने के लिए शरहद पर खड़ा रहता है |
सैनिक के दिल में अपने देश के लिए प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरा हुआ होता है | सैनिक किसी भी मुसीबत से नहीं घबराते हैं | गर्म तापमान और कड़कड़ाती ठण्ड के मौसम में हमारे देश के जवान तैनात रहते हैं |
हमारे देश के सभी जवानों और शहीदों को कोटि-कोटि प्रणाम है तुम्हें | क्योंकि इन इन्हीं के प्राणत्याग और बलिदान के कारण आज हम अपने घरो में सुरक्षित बैठे हैं | हम अपने देश के जवान को जितना धन्यवाद देंगे उतना ही कम है |
हमारा भारत देस्व्ह के कृषि प्रधान देश है | यहाँ के अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा कृषि पर आधारित है | हमारे देश के किसान ही भारत देश के अन्नदाता हैं | किसान अपनी मेहनत से ही खेतों में अनोखा आता है और देश के हर नागरिक का पेट भरता है |
किसान सुबह से लेकर शाम तक कठोर परिश्रम करता है | जैसे खेतों की जुताई करना, बीज बोना, पानी देना, फसल काटना यदि देश के किसान खेतों में अनाज पैदा करना छोड़ देंगे तो हमारा क्या हाल होगा | किसानों के मेहनत पर ही हमारा अस्तित्व टिका हुआ है |
फिर भी किसानों का शोषण सदियों से होतआ रहा है | पहले अंग्रेजी सरकार ने चूसा फिर जमींदार और साहूकारों ने उसे दबाया आय दिन हम अखबार और न्यूज पर सुनते हैं की किसान ने आत्महत्या कर ली |