प्रस्तावना :
प्रत्येक किसान देश के रीड की हड्डी के समान हैं| यदि हम विश्व में देखे तो भारत एक कृषि प्रधान देश हैं | सम्पूर्ण भारत वर्ष में जब कोई शिक्षित नहीं था तब से, कृषि ही एक मात्र व्यापार था और आज भी है |
ई.वी सन १९७० के पहले भारत के किसान स्वयं के लिए अनाज की पैदावार करने में उनते सक्षम नहीं थे, जितने की आज हैं|
किसान का जीवन
प्रतिदिन किसान को प्रातः सूर्ययोदय से पूर्व उठ कर हल लेके अपने खेतो में परिश्रम करना होता है| जब किसान कुल फसल की जोताई, बोआई, कटाई, निरे इत्यादि खेती के कार्यो को सम्पूर्ण करके जो भी फसल मौसम की मार से बाच जाते है|
और जो भी उसके हाथ लगता है उसमे से भी कर देता है और कुछ बेच कर अपना जीवन निर्वाह करता है और कुछ अनाज से वो अपनी जीविका के लिए उपयोग करता है| शुरू से हीं एसा ही कुछ भारत के किसान की जीवन प्रणाली रही हैं|
अर्थात कुछ समय बाद ब्रिटिश भी भारत की इस मजबूरी का फायदा उठाने लगे और कुछ समय बाद तो उन्होंने हद्द ही करदी वो किसानो को मुट्ठी भर अनाज के लिए, किसानो के ही खेतो में उन्हें मजदूरों की तरह काम करवाने लगे | कभी ब्रिटिश तो कभी जमींदार..
किंतु इनसब मुश्किलों के बावजूद वे हिम्मत नहीं हारे और सारे मुस्किलो का डटकर सामना करते रहे|
भारतीय किसानो का महत्वपूर्ण योगदान
भारत के कुल किसान भारत के अर्थव्यवस्था में लगभग १७% का योगदान देते है | इसके बाद भी वो गरीबों का जीवन जीते हैं| और हम आराम से दफ्तरों तथा फ्लेटो में रहते है| किसान बहुत ही भोला स्वभाव का होता है| वो तो केवल अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए खेती करता है किंतु वह अनजाने में ही पुरे देश का पेट भरता है|
हमें यह याद रखना चाहिए की, किसान कभी भी रोजगार के लिए किसी का भी मोहताज नहीं रहता और न कभी रहेगा| इसके विपरीत देखा जाए तो किसान हमेशा से हीं दूसरो को रोजगार देता आरहा हैं|
भारतीय किसानो पर हो रहे अत्याचार
हमारे भारत देश के किसानो की स्थिति कुछ ऐसी है कीं, आज भी वो अपने दैनिक जीवन व्यापन के लिए अपनी १००%की कमी का ६०% बैंको, जमींदारो तथा पूंजीपतियों को देना पड़ता है, कारण हे की वो ऋणग्रस्त होते है| और हमेशा से ही पाया गया हैं की पूंजीपतियों के कर्जे के बोझ के नीचे दब कर एक दिन वो अपना दम तोड़ देता है|
निष्कर्ष :
हाँ यह सत्य है की किसान ही है जिसके कारण हमें अपनी भूख शांत करने के लिए प्रतिदिन भोजन प्राप्त हो जाता हैं| और भारत की असली परख हमें तब होती है जब हम अपने गाओं में जाते हैं| एक किसान जिस प्रकार से कठिन परिश्रम करके लोगो को अनाज पहुचाने का शुभ कार्य करता हैं| वैसे तो बड़े-से-बड़े अधिकारी भी कार्य नहीं करता होगा तो इसलिए हमें उनकी सहायता हेतु सर्कार से निवेदन करना चाहिये की उन्हें हर उचित प्रकार सुविधाए उपलब्ध कराइ जाए|