भगत सिंह पर निबंध – पढ़े यहाँ Hindi in Essay Bhagat Singh

प्रस्तावना :

सरदार भगत सिंह एक भारतीय युवा क्रांतिकारी थे जिन्हें “शहीद भगत सिंह” कहा जाता है | शहीद भगत सिंह को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक मानें जाते हैं |

जब भी शहीद भगत सिंह का नाम लिया जाता है तो हर किसी के दिल में उनके लिए अपरम्पार श्रद्धा उमड़ जाती है और सिर सम्मान से झुक जाता है |

अमर शहीद भगत सिंह का जन्म 

सरदार भगत सिंह का जन्म २८ सितंबर १९०७ को प्रचलित है लेकिन अनेक तत्कालीन साक्ष्यों के अनुसार उनका जन्म १९ अक्टूबर १९०७ में एक सिख परिवार में हुआ था |

भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह था और माता का नाम विद्यावती कौर था | भगत सिंह का पूरा परिवार पूर्ण रूप से आर्य समाजी था | भगत सिंह बचपन से ही मेधावी थे |

अमर शहीद भगत सिंह का जीवन 

भगत सिंह बचपन से ही वीरों का खेल खेला करते थे, बचपन से ही उनके अंदर देशप्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी |

वे बचपन में अपने पिता की बन्दुक को खेत में गाढ़  दिए थे | क्योंकि उनका कहना था की एक बन्दुक से कई बंदूकें होंगी और उन्हें अपने साथियों में बाँट दूंगा |

इंकलाब जिंदाबाद का नारा 

अमर शहीदों में सरदार भगत सिंह का नाम सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है | भगत सिंह का” इंकलाब जिंदाबाद” का उनका नारा ने युवाओं पर स्वतंत्रता आंदोलन के  दौरान  काफी  प्रभाव  डाला  था |

अमर शहीद भगत सिंह पढाई करते हुए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग भी लेते थे, उनका पहचान राजनितिक नेता लाला लाजपत राय से हुई थी, उस समय भगत सिंह ९ वर्ष के थे |

लाला लाजपत राय की हत्या का बदला 

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के बाद लाला राय की मृत्यु होने के कारण भगत सिंह पर गहरा असर पहुंचा | जिसके कारण भगत सिंह ब्रिटिश क्रूरता को सहन नहीं कर पाए और दूसरे दिन वहाँ जाकर खून से डूबी मिटटी ले आये और लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने का संकल्प लिया |

उनका पहला कदम ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स को मारना था | भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर १७ दिसंबर १९२८ में लाहौर को सवा चार बजे ए.एस.पी. सांडर्स के आते ही राजगुरु ने एक गोली सीधा उसके सर में मारी जिसके बाद वे अपना होश खो बैठे |

भगत सिंह ३-४ गोली दाग कर भाग रहे थे की एक सिपाही चनन सिंह ने इनका पीछा करना शुरू कर दिया | तब चंद्रशेखर आज़ाद ने उसे सावधान किया की आगे बढे तो गोली मार दूंगा और नहीं मानने पर चंद्रशेखर आज़ाद ने उसे गोली से मार दी इस प्रकार लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने में चंद्रशेखर आज़ाद ने भगत सिंह की सहायता की |

निष्कर्ष :

२३ मार्च १९३१ शाम ७ बजकर ३३ मिनट पर भगत सिंह और उनके दो साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई | फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे :

“मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे”

“मेरा रँग दे बसन्ती चोला |  माय रँग दे बसन्ती चोला”

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Updated: November 19, 2019 — 1:50 pm

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