गुरपुरब पर निबंध – पढ़े यहाँ Gurpurab Festival Essay in Hindi
By hindiscreen
प्रस्तावना:
हमारे भारतीय संस्कृत में गुरू को साक्षात परमब्रह्म कहा गया है | गुरपूरब गुर का मतलब होता है ‘गुरू’ तथा पूरब का मतलब होता है ‘पर्व’ गुरू नानक देव सिख धर्म के संस्थापक थे | गुरू नानक जयंती को गुरू पर्व और प्रकाश उत्सव के नाम से जाना जाता है |
गुरू नानक देव एक महान आत्मा थे और सादा जीवन जीते थे परंतु उच्च विचार के सिद्धांत का पालन करते थे | गुरू नानक देव अपने अनुयायियों को जीवन में उच्च पालन करते थे | तथा नानक की के नजर में ईश्वर सर्वव्यापी है |
गुरू नानक जी के पिता का नाम श्री कलूचंद वेदी जो तलवंडी में पटवारी का काम करते थे | उनके माता का नाम श्रीमती तृप्त देवी एक धर्मपरायण और साध्वी महिला थी | मात के संस्कार बाल नानक पर पड़ा था जो बचपन से ही कुशाग्र दिमाग के थे |
गुरू नानक जी का जन्म और शिक्षा
गुरू नानक जी जन्म १५ अप्रैल १४६९ में तलवंडी नामक ग्राम में हुआ था | जो इस समय पश्चिमी पंजाब में हुआ था | गुरू नानक जी के जन्म स्थान को ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है, जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है | उनके जन्मदिन को सभी सिख लोग मिल जुलकर धूमधाम से मानते हैं | तथा उनके जन्मदिन पर गुरूद्वारे में भव्य लंगर का आयोजन भी किया जाता है |
गुरु नानक देव बचपन से ही ज्ञानशील होने के कारण वे जनता की सेवा करने का रास्ता अपनाएँ | उन्हें स्कूल शिक्षा से ज्यादा ध्यान साधू-संतों और विद्वानों के संगत साथ रहना अच्छा लगता था | नानक जी के स्वभाव चिंतनशीलता एवं एकताप्रिय था |
गुरू नानकपर्व
गुरू पर्व आने से तीन सप्ताह पहले से ही सिख धर्म के लोग भजन कीर्तन करते हुए सुबह-सुबह फेरी निकालते हैं | और रूमाल चढाते हैं | परंतु लोग श्रद्धा के अनुसार गुरूद्वारा में दान-पूण्य भी करते है | गुरू नानक पर्व की सुरुआत दो दिन पहले से ही गुरू ग्रंथ साहिब के नाम से शुरू होती है | गुरू नानक जयंती कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाती है |
गुरू नानक जी के जीवन की अद्भुतघटनाएँ :
गुरू नानक एक असधारण बालक थे | नानक जी को गृहस्थ जीवन में लगानें के उद्देश्य से पिता उन्हें व्यापार हेतु कुछ रुपये उन्हें दिए | परंतु नानक जी उन रुपयों को साधू-संतो और महात्माओं की सेवा में खर्च कर दिए | क्योंकि उनके नजरों में साधू-संत की सेवा से बढ़कर और कुछ नहीं था |
ग्रीष्म ऋतू की कड़ी धूप में नानक जी एक गाँव में पहुचे थे | करतेज धूप के कारण वे विश्राम करनें बैठे देखते देखते उन्हें नींद आ गई उन्हें छाया देने के लिए एक साँप अपना फन फैलाया था | यह दृश्य देखकर गाँववाले चकित रह गये | गाँव के मुखिया उन्हें भगवान का रूप समझकर प्रणाम किया | औए इस घटना के पश्चात नानक के आगे ‘देव’ शब्द जुड़ गया |