प्रस्तावना :
ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी समस्या है जो पुरे विश्व को अपनी चपेट में लिए हुआ है| वैज्ञानिकों ने इसकी गंभीरता को देखते हुए देशों को आने वाले भयंकर संकट के बारे में अवगत भी कराया है| पृथ्वी की सतह का तापमान निरंतर बढ़ते रहने के कारण विश्व को ग्लोबल वर्मिंग की समस्या का सामना करना पड़ रहा है |
जिसके कारण धरती पर जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है | कई आपदाएँ पृथ्वी पर बढ़ती ही जा रही है | जिसके कारण पृथ्वी का संतुलन बिगड़ गया है | धरती पर बढ़ती आबादी ने जरुरतों को भी बढ़ाया है |
ग्लोबल वार्मिंग के कारण
ग्लोबल वार्मिंग पुरे विश्व में एक मुख्य वायुमंडलीय मुद्दा है | सूर्य की रोशनी को लगातार बढ़ते दुष्प्रभावों से इंसानों के लिये बड़ी समस्याएँ हो रही हैं | जिससे वातावरण में कार्बनडाई ऑक्साइड का स्तर बढ़ते ही जा रहा है | इसके लगातार बढ़ते दुष्प्रभावों से मानव लिए बड़ी-बड़ी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं |
ग्लोबल वार्मिंग तब होती है जब कार्बनडाई ऑक्साइड और अन्य वायु प्रदुषण और ग्रीनहॉउस गैस वायुमंडल में इकठ्ठा होती रहती है | सूर्य की रोशनी और सौर विकिरण \ रेडिएशन को ग्रहण करती है | जो की पृथ्वी की सतह पर फैलती है | यह प्रदूषक वायुमंडल में सदियों तक रह सकते हैं |
महासागर बर्फ की चोटी सहित पूरा पर्यावरण और धरती की सतह का नियमित गर्म होने की प्रक्रिया को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है | पिछले कुछ सालों में वैश्विक तौर पर वातावरणीय तापमान में वृद्धि देखी गई है | पर्यावरणीय सुरक्षा एजेंसी के अनुसार पिछले शताब्दी में १.४ डिग्री (०.८ डिग्री सेल्सियस ) लगभग धरती के औसत तापमान में बृद्धि हुई है |
धरती की सतह का तापमान लगातार बढ़ते रहने के कारण पुरे विश्व को ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का सामना करना पड़ रहा है | जिसके कारण धरती पर जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है | अनेक प्राकृतिक आपदाएँ इस पृथ्वी पर बढ़ती जा रही है |
ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ
ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वाले परिवर्तन’ ग्लोबल वार्मिंग बहुत बड़ी समस्या है यह मनुष्य नहीं समझ पाता | उसे यह शब्द थोड़ा तकनीकीलगता है |
इसलिए वह इसकी तह तक नहीं जाता है | भारत में ग्लोबल वार्मिंग एक प्रचलित शब्द नहीं भाग-दौड़ में रहने वाले भारतियों के लिये इसका अधिक कोई मतलब नहीं हैं |
निष्कर्ष :
ग्रीन हाउस गैस वह गैस होती है जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर यहाँ का तापमान बढ़ाने में कारक बनती है | वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो २१वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान ३ डिग्री से ८ डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है |