प्रस्तावना :
वसुधैव कुटुंबकम यह साहित्यिक रूप से संस्कृत एक समृद्ध भाषा है | इसी भाषा से एक महान विचार की उत्पत्ति हुई है | वसुधैव कुटुंबकम – वसुधा का अर्थ है “पृथ्वी” और कुटुंब का अर्थ है “परिवार” | पूरी पृथ्वी ही परिवार है | इस पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणी, पशु-पक्षी, जीव-जंतु, मनुष्य ही एक परिवार का हिस्सा है |
वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ जहाँ एक पूरी वसुधा हमारी पृथ्वी को एक परिवार के रूप में बांध देता है | वसुधैव कुटुंबकम हमारे हिंदू धर्म जिसे सनातन धर्म भी कहा जाता है | मनुष्य एक समाजिक प्राणी है और समाज की सबसे प्रथम कड़ी होता है परिवार |
हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति पुरे विश्व की संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ और समृद्ध संस्कृति है | भारत विश्व का सबसे पुराना सभ्यता वाला देश है |
भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण तत्व शिष्टाचार, तहजीब, सभ्य संवाद, धार्मिक संस्कार, मान्यताएँ और मूल्य आदि है | अब हर एक की जीवन शैली अधुनि हो रही है |
परिवार एकज ऐसे समूह का नाम है जहाँ लोग विभिन्न रिश्ते-नाते एक दूसरे से जुड़े होते हैं | ऐसा नहीं है की उनमें कभी लड़ाई-झगड़ा नहीं होता है या फिर कोई वैचारिक मतभेद नहीं होता है | इन सब के बावजूद भी लोग एक दूसरे के सुख दुःख के साथी होते हैं |
एक परिवार के सदस्य एक दूसरे को सहारा बनते हुए आगे बढ़ते हैं | ऐसे परिवार के रूप को जब वैश्विक स्तर पर निर्मित किया जाएगा तो वह ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ कहलाएगा |
मनुष्य जाती इस धरती पर उच्चतम विकास करने वाली जाति है | बौद्धिक रूप से वह अन्य सभी जीवों से श्रेष्ठ है | अपनी इसी बौद्धिक क्षमता के कारण यह पुरे पृथ्वी का स्वामी है और पृथ्वी के अधिकांश भू-भाग पर उसका निवास है |
वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा की संकल्पना भारतवर्ष के प्राचीन ऋषिमुनियों द्वारा की गई थी | जिसका उद्देश्य था पृथ्वी पर मानवता का विकास |
हमारे विचारकों और ऋषिमुनियों ने आदिकाल से ही क्यों वसुधैव कुटुंबकम की धारणा को जनमानस के संस्कार में डालने की कोशिश की गई है |
कारण यही है की अलग-अलग भूखंडों पर अलग परिस्थितियों से मानव रंग-रूप, खान-पान और वेशभूषा की प्राकृतिक भिन्नता के कारण अलग से ही जाते हैं | इसलिए हमारे ऋषिमुनियों ने मनुष्य उत्थान के लिए भिन्नता में असमानता स्थापित करने का प्रयास किया है |
यह विश्व शांति के लिए आवश्यक है क्योंकि मनुष्य अपनी भिन्नता के कारण हमेशा से ही एक दूसरे से युद्ध करता आया है | आज भी वसुधैव कुटुंबकम भारत की विदेश निति की नींव है |
हमारी इस पृथ्वी ने अपने ऊपर अंबर का चादर ओढ़ रखा है, वह तो हर तरफ से समान ही दीखता है | इस धरती पर चाँद और सूरज भी एक जैसे दीखते हैं | पूरा विश्व एक अलग समूहों बंटा हुआ है, जो अपने अधिकारों और उद्देश्यों के प्रति सजग है |