प्रस्तावना:
स्त्री-पुरुष समानता हमारे देश में पहले से चली आ रही प्रथा हे. लेकिन आज भी महिलाओंको हमेशा दुय्यम स्थान दिया गया हे.
स्त्री शिक्षण क्यों जरूरी हे
हमारे देश में पुराने ज़माने में महिलान्को शिक्षण सेवा वंचित रखा जाता था. उनको घर से बाहर भी निकलना मुश्किल था. पालने में ही शादिया कराई जाती थी. तब कोई कानून नहीं था, ये सब रोकने के लिए. महिलाये ना चाहते हुए भी सती जाती थी.
मतलब पति के मरने के बाद उसके साथ चिता पर उसे भी बैठना पड़ता था. ये आज सोच कर भी रूह कांप जाती हे. बालविवाह, सती प्रथा ईन सबको रोख लगाना जरुरी था. घर की बेटी भी इंसान हे ये सब भूल भी जाते थे.
स्त्री शिक्षा जरुरी क्यू हे?
स्त्री शिक्षा इसलिए जरुरी हे की, वो घर का सारा भार उठाती हे. घर के काम से लेकर बच्चों की पढाई तक का खयाल रखती हे. पिता, पति अगर बाहर नौकरी कर रहे हे तो घर का सारा खर्चा दिये हुए पैसे में कैसे चलना हे ये सिर्फ वो जाणती हे.
अगर वो अशिक्षित रह गयी तो ये सब कैसे संभालेगी. कैसे बच्चो को अच्छी शिक्षा दे पायेंगी. स्त्री हर एक भूमिका निभाती हे, माँ, बहन, पत्नी अगर वो पढ़ लिख नहीं पायी तो कैसे अपने घर को सवरेगी. इसका ख़याल हमें करना चाहिए.
सावित्री बाई फुले
ये एक नाम ऐसा हे जिनकी वजह से आज स्त्री शिक्षित हो पाई हे. ज्योतिबा फुले उनके पति जिन्होने अपनी पत्नी को शिक्षा देना शुरू किया, पहले तो बोहोत तकलीफे आयी. लोगो ने उनको बोहोत सताया. विरोध किया. लेकिन उन्होंने ठान लिया था अपनी पत्नी को शिक्षा देना ही हे.
१ जनवरी १८४८ में सावित्री बाई और उनके पति ज्योतिबा पहले इन्होने लड़कियों के लिया पहला स्कूल खोला. ईसी स्कूल में सावित्री बाई शिक्षिका बन गयी.
स्त्री का महत्व
पहले तो स्त्री शिक्षा पर बंधन था. लोगों को लगता था की स्त्री पढ़ लिख लेगी, तो घर बर्बाद हो जायेगा, गांव वाले लोग गांव से बहार कर देंगे. खाना पीना बंद कर देंगे. गवा निकला होगा, तो कोई भी उन्हें गांव में रहने नहीं देगा
ऐसे सोच विचारोंसे ही हमारी कितनी लड़किया आज घर से निकली गयी, जलाई गयी, लेकिन आज सावित्री बाई और ज्योतिबा फुले की वजह से हमारी महिला एक निडर महिला बानी हे.
अगर वो पड़ेगी लिखेगी नहीं तो हमारा परिवार कैसे सुखी होगा.
स्त्री और दुर्गा
दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती की हम इतनी मनो भावे पूजा करते हे. लेकिन वो भी एक नारी हे. अगर देवताओ ने उसे सन्मान दिया हे तो हम इंसान क्यों स्त्री की लाज नहीं रखते. हम देवी का अपमान नहीं सेहन कर सकते. लेकिन घर की स्त्री को मार जरूर सकते हे. क्यों उसे सन्मान देने से कतराते हे.
उसे देवी का दर्जा नहीं चाहिए आपके दिल में और आपके घर में जगह चाहिए. उसे भी पढ़ना लिखना हे, तो उसकी ख्वाइश पूरी करो.
आज की स्त्री
आज की स्त्रिया किसी भी चीज़ में काम नहीं हे, कोई पायलट हे कोई ट्रैन चला रही हे, तो कोई संगीत से अपने देश को आगे बढ़ा रही हे, तो कोई देश के लिए शहीद हो रही हे, और अपने परिवार का भी नाम रोशन कर रही हे.
सारांश:
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ