डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध – पढ़े यहाँ Essay On Rajendra Prasad In hindi

परिचय:

डॉ राजेंद्र प्रसाद को कौन नहीं जानता वे स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति थे. राष्ट्र के लिए उनका योगदान बहुत गहरा है. वह भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे.

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार के छपरा के पास सीवान जिल्हे के जीरादेई गाँव में एक बड़े संयुक्त परिवार में हुआ था. उनके पिता, महादेव सहाय फ़ारसी और संस्कृत भाषा के विद्वान थे, जबकि उनकी माँ कमलेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थीं.

पांच साल की उम्र से, राजेंद्र प्रसाद को फारसी, हिंदी और गणित सीखने के लिए एक मौलवी के संरक्षण में रखा गया था. बाद में उन्हें छपरा जिल्हा स्कूल में स्थानांतरित कर दिया और आर.के. अकादमी पटना मे बड़े भाई महेंद्र प्रसाद के साथ पढणे भेजा.

राजेंद्र प्रसाद एक प्रतिभावान छात्र थे उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रवेश परीक्षा में प्रथम क्रमांक प्राप्त किया था. और छात्रवृत्ति से सम्मानित करके उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश मिला. वे शुरू में विज्ञान के छात्र थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपना ध्यान कला की धारा में बदलने का फैसला किया.

व्यवसाय

अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन ख़तम होने के बाद, वह मुजफ्फरपुर में, लंगट सिंह कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर बने. और उसी कॉलेज में उन्हें प्राचार्य भी बनाया गया. उन्होंने कई वर्ष के बाद नौकरी छोड़ दी और लॉ की डिग्री प्राप्त करने के लिए कलकत्ता लौटे. 

कलकत्ता विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करते समय, साथ ही में उन्होंने वहा के सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र पढ़ाया. फिर १९१५ में उनकी मास्टर्स इन लॉ की पढ़ाई पूरी हुई. आखिर में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लॉ में डॉक्टरेट की डिग्री भी हासिल कर ली.

स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपति के रूप में

१९४६ में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार में, डॉ राजेंद्र प्रसाद को खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में चुना गया. फिर उसी साल उन्हें संविधान सभा का अध्यक्ष भी चुना गया था. 

उन्होंने १९४६ से १९४९ तक संविधान सभा की अध्यक्षता की और भारत के संविधान को बनाने में मदद की.  २६ जनवरी १९५० को, पेहेला भारतीय गणतंत्र दिवस मानाया गया और डॉ राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए.

उन्होंने भारत के राजदूत हैसियत से बड़े पैमाने पर दुनिया की यात्रा की. डॉ राजेंद्र प्रसाद, १९५२ और १९५७ में २ बार चुने गएभारत के राष्ट्रपति थे.

उनकी मानवता

डॉ प्रसाद हमेशा संकट में पड़े लोगों की मदद के लिए तैयार रहते थे.

उनकी मौत कैसे हुई

२८ फरवरी, १९६३ को लगभग छह महीने तक बीमारी से पीड़ित रहने के वजेसे डॉ प्रसाद का निधन हो गया. सितंबर १९६२ में डॉ प्रसाद की पत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया, इस घटना के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और डॉ प्रसाद सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्त ले लिया. 

सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपने जीवन के आखरी कुछ महीने सदाकत आश्रम में बिताए. १९६२ में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार “भारत रत्न” दिया गया था.

निष्कर्ष:

राजेंद्र प्रसाद का जीवन एक आदर्शवादी के आत्म-बलिदान संघर्षों की गाथा है, वह भारतीय संस्कृति के एक सच्चे प्रतिनिधि थे. वह अपनी मातृभूमि के लिए देशभक्ति, ईमानदारी और निस्वार्थ सेवा के लिए भारत के सबसे सम्मानित नेताओं में से एक थे.  

Updated: मार्च 12, 2020 — 1:52 अपराह्न

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