प्रस्तावना :
मैं एक पेड़ हूँ, मै भगवान द्वारा प्रकृति को दिया गया एक अनमोल उपहार हूँ | सा जगत में घटित होने वाली सभी प्राकृतिक घटनाओं का प्रमुख कारण हूँ | मैं इस दुनियां में रहने वाले सभी जीव-जंतुओं के जीवन का आधार हूँ | इस पृथ्वी पर सबसे पहले मेरा जन्म हुआ था |
अपने जन्म से पहले मैं पृथ्वी के भूगर्भ में एक बीज के रुप में सुप्तावस्था में पड़ा हुआ था | तब मैं पृथ्वी के भूगर्भ में उपस्थित जल एवं खनिज तत्वों से अपना पोषण करके अपना विकास किया | इस पृथ्वी के भूगर्भ से बाहर एक तनें के रुप में आया |
जब मैं छोटा था तब मुझे जानवर परेशान किया करते थे | बड़ी मुश्किल से मैं बच पाया हूँ | मैं अपने आस-पास के बड़े पेड़ों को देखकर यही सोंचता था की मैं कब इनकी तरह बड़ा पेड़ बन पाउँगा |
समय के साथ ही मेरा विकास होता गया और आज मैं बड़ा हो गया हूँ | मेरे शरीर का सभी हिस्सा मानव के लिए बहुत ही लाभदायक है |
पेड़ की कहानी
मुझे अब किसी भी जानवर क डर नहीं रहता है | बड़ा होने के कारण लोग मेरी टहनियों को नहीं तोड़ पाते हैं | शाखाएं हरी-हरी पत्तियों से ढँक गई हैं | इन पर फल और फूल लग चुके थे | आज मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं भी लोगों को लाभ पहुंचाता हूँ |
मैं भी अन्य पेड़ों की तरह प्रकृति को हरियाली, और पक्षियों को उनक रहने के लिए घर और मानव ऑक्सीजन प्रदान करता हूँ और स्वंय कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करता हूँ | मैं एक सड़क के किनारे पर रहता हूँ | सड़क चलते राही अक्सर मेरी छाया में लंबे समय तक बैठे रहत हैं |
मेरी छोटी-छोटी टहनियों और शाखाओं पर लगे हुए रंग-बिरंगी फूलों को तोड़कर मानव मेरे फूलों को तोड़कर भगवान के चरणों में अर्पित किये जाते हैं, जो की मुझे बहुत अच्छा लगता है | साथ ही मानव मेरे फूलों को तोड़कर घरों और मंदिरों को सजता है | यह देखकर मैं खुशी की अनुभूति करता हूँ |
सुबह की शुद्ध और ठंडी हवाएं, सूर्य की पहली किरण क साथ मेरी शाखाओं पर लगी पत्तियों को स्पर्श करती हैं |
पर्यावरण
पंक्षी इन पर आकर अपनी मधुर आवाज से इस वातावरण को मधुरिम बनाते हैं | हर साल वसंत ऋतू मन मैं अपनी शाखाओं पर लगे सभी पुरानी पत्तियों को निचे गिरा देता हूँ |
जो मिट्टी में मिल कर मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं | मेरी शाखाओं पर लगे फल को खाकर मनुष्य अपना पोषण करके प्रसन्न हो उठता है |
इस संसार में शाकाहरी जानवर मेरी पत्तियों को खाकर अपना भरण पोषण करके अपना जीवन यापन करते हैं | मेरे सघन वनों को सभी जीव जंतुओं ने अपना बसेरा बना लिया है |
निष्कर्ष:
समय बीतने के साथ-साथ मानव ने अपना विकास किया | अब मानव हमारे महत्व को बिना सोंचे समझे ही अपने आवश्यकताओं की पूर्ति एवं अपना निवास स्थान बनाने के लिए हमारा विनाश कर रहा है |
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