प्रस्तावना:
माँ के बारेमे हम सब जानते हे, किवकी हम हमेशा उसके आस पास ही राहते हे. कभी पिताजी के बारेमे हमने जादा कभी बात नही की.
मेरे पिताजी
माँ से मे बोहोत प्यार करती हू, लेकीन पिताजी से हमेशा डर लगता हे, वो जब घर पे नही रेहते तब मुझे बोहोत अछा लागत हे. लेकिन शाम होते हि जब उनके आने का वक्त होता तब घर मे सन्नाटा छा जाता है. सबको लगता हे कि, मेरे पिताजी बोहोत सख्त हे, लेकिन वैसे कुछ नही हैं. वो जितने उपर से सख्त हे उतनेही अंदर से नरम दिल हे. जैसे हि नारायील कि तरह जो उपर से कडक और अंदर से मिठा.
उनोने अपनी जिंदगी मी बोहोतं मेहनत कि हे, जो हमने देखी भी हे, दिन-रात मेहनत करके हमे पढाया, लिखाया इतना काबील किया कि, आज हम अपने पैरो पर खडे हो सके हे.
मेरे पिताजी मेरा आदर्श
मी उनको अपना आदर्श मानती हू. उनके उसुलो को जाणती हू. उन्होने कभी हारणा नही सिखा. उनको हमेशा दादा-दादी, नाना-नाणी का खयाला रखते हुए देखा हे. वो हम सब से बोहोत प्यार करते हे, लेकिन दिखाते नाही.
हम जब भी घर मे साथ मे होते थे, तब दादाजी हमेशा हमे पिताजी कि बदमाशीयों के बारेमे बताते थे. हमे बडा मजा आता था ये सब सुनेने मे.
हमारे सामने जो छवी थी वो बोहोत अलग थी, और जो बाते हम सुनते थे वो अलग थी. लेकिन एक बात जरूर कहूँगी कि उन्होने हमेशा हमारी हर ख्वाहिश पुरी कि हे. हमे कभी किसी बात के लिये रुठना नही पडा.
पिताजी का डर
हमेशा जबी हम सब पढाई छोडकर मस्ती करणे मे लगे रहते हे. तो माँ चिल्लाती हे पढणे बैठं जाओ पिताजी आते होंगे, शोर करोगे तो मार खाऊगे. और हम डर के मारे चुपचाप बैठं जाते थे. खाना खाते वक्त भी किसी कि आवाज नही होती थी. और खाना खा कर चुपचाप सो जाते थे.
पिताजी का प्यार
हमे हमेशा लगता था कि, वो हमारा खयाल नही रखते, हमेशा चिल्लाते हे, ऐसे मत बोलो, पढाई करो, चुपचाप सो जाओ, लेकिन उनको जब अंदर से जणांना सुरू किया तब पता चाला ये इन्सान अंदर से इतना नरम हे, कि मे आज ऊस बात पर खुदको दोष देती हू, हमेशा सबसे सुना माँ बेटे और बाप बेटी से बोहोत प्यार करते हे. क्यूनकी जब वो अपने पिता घर छोडकर किसी के घर जाती हे, तब उस पर आपणा हक नही रहता. जबी मे बिमार होती थी तब रात रात माँ के साथ वो भी जागते थे. माँ किसी चीज के लिये मना करती थी, तब पिताजी छुपकेसे काम पर जाते जाते दे देना उसे कहकर चले जाते थे.
वो आखरी पल
जब मेरी शादी तय हुई तब घर मे सब खुश थे, पिताजी भी काम मे व्यस्त थे, उनकी भागंदौडी मे देख रहि थी, किसी चीज कि कमी ना राहे इसलिये सब को काम पे लगा दिया था.
शादी का माहोल खतम् हुआ विदाई शुरु हुई हर कोई आके मिल रहा था लेकिन पापा कही दिखाई नही दे रहे थे. माँ को पुछने पर पता चला वो मेरे कमरे मे मेरी गुडिया हाथ मे लेकरं रो रहे थे. वो दिन मे कभी नही भुलूंगी. पापा को पेह्ली बार ऐसें देखा था.
सारांश:
मेरे पिताजी से मे अलग नही हू.