प्रस्तावना :
बाजार एक ऐसे स्थान को कहा जाता है जहाँ किसी भी चीजों का व्यापार होता है | बाजार जहाँ पर किसी भी वस्तुओं और सेवाओं का क्रय और विक्रय होता है | आम नजर और खास चीजों के बाजार दोनों तरह के बाजार अस्तित्व में हैं | बाजार में कई तरह के अलग-अलग चीजों को बेंचने वाले एक स्थान पर ही होते हैं | जिससे बाजार में कोई भी व्यक्ति किसी भी चीज को खरीदनें के लिए व्यक्ति बाजार में जाकर अपनी किसी भी चीजों को आसानी से ढूंढ सकता है |
सामान्यतः बाजार का अर्थ उस स्थान से लगाया जा सकता है जहाँ भौतिक रूप से उपस्थित क्रेताओं द्वारा वस्तुओं को ख़रीदा और बेंचा जाता है | कोई भी व्यक्ति अकेले ही अपनी समस्त आवश्यकताएँ पूरी नहीं कर सकता है | उसे बाजार का सहारा लेना पड़ता है |
सभ्यता के आरम्भ से ही ही मनुष्य एक दूसरे पर निर्भर रहा है | समय के साथ बाजार के स्वरुप का विस्तार होता रहा है | पहलर मनुष्य की आवश्कताएँ बहुत कम थी इसलिए बाजार भी छोटा हुआ करता था | लोग अपने आस-पास के दुकानों से ही अपनी जरूरतों को पूरा कर लेते थे |
समय के साथ-साथ मनुष्य की आवश्यकताएँ भी बढ़ने लगी और न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नई-नई वस्तुओं का निर्माण होने लगा | गाँव तथा शहरों के साप्ताहिक अस्थायी बाजारों में सभी चीजें नहीं मिलती है |
वहां जैसे सब्जियां, फल, कपडे, घरेलु उपकरण तथा खानें-पिनें की ही चीजें मिलेंगी | वहां वही चीजें मिलेंगी जिनकी आवश्यकता गृहणियों को हर रोज होती है | बाजार एक ऐसा स्थान है जहाँ सभी चीजें उपलब्ध होती हैं |
लोग बाजार जाते हैं और अपने आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदते हैं | जैसे सब्जियां, साबुन, दंत मंजन, मसाले, ब्रेड, बिस्किट, चावल, दाल, कपडे, किताब-कापियाँ आदि सभी चीजों को खरीदते हैं | इन सभी वस्तुओं की सूचि बनाई जाये तो वह बहुत ही लंबी है | बाजार भी कई प्रकार के होते हैं, सामूहिक बाजार, पड़ोस की गुमटी, मोहल्ले दूकान, साप्ताहिक हाट बाजार, बड़े-बड़े शॉपिंग काम्प्लेक्स और शॉपिंग मॉल आदि |