प्रस्तावना
पत्र ये एक ऐसी संकल्पित है जो अब फोन, मोबाइल, इंटरनेट इन सब ने छीन ली हे.
पत्र के प्रकार
पत्र दो प्रकार हे होते हे, एक औपचारिक और दुसरा अनौपचारिक. इसमे भेद ये हे कि, औपचारिक पत्र केवल कामकाजो मी उपयुक्त होता हे, जैसे कि, किसी दुकानदार ने किसी चीज कि मंग कि हो अपने दुकान मी रखने कि, तो उसके लिये पत्र मे उसकी पुरी जानकारी भेज दे. या फिर किसी कार्यालय सेकिसी और कार्यालय में पत्र भेजा हो,
दुसरा पत्र हे अनौपचारिक जो हम रिश्तेदार, सगे मे खैर-खैरीयत पूछने के लिये, शादी का नियोता देने के लिये, या किसी बुरी खबर को पहोचाने के लिये पत्र भेजते थे.
पत्र कि बदलती संकल्पना
आज कल किसी के पास इतना वक्त नाही हे कि, पत्र लिखते रहे. डिजिटल के जमाने जहा मोबिले फोने, इंटरनेट आ गये हे, वहा पत्र कि संकल्पना गायब हो गई हे. पहले के जमाने में ये सब नही था, लोग पत्र द्वारा अपनी ख़ुश हाली पहोचाते थे. कोई ख़ुशी का सुभाआरम हो, शादी, हो, इसके नियोते पत्र द्वारा पोह्चाये जाते थे.
पत्र एक ऐसी चीज थी जिसका सब इंतजार करते थे, गांव के लोगो में ये उत्स्तुकता बहोत जादा होती थी. अपना कोई काम के सिलसिले मे गांव से दूर जाता था, तब वे एक दुसरे को खत से अपनी बाते बताते थे. हम सब इंतजार करते थे कब किसी का खत आये, हम सब एक जुट होकर सुने बैठे. सच में वो एक सुखद ख़ुशी होती थी.
पत्र की परिभाषा
पत्र कि परिभाषा क्या कहे, जो किसी के दिल को सुकून पोह्चाये, जो डाकिया कि राह देखते रहे. और खुद पड़ना न जानते हो, तो डाक बाबू से पढकर ले. और खत पढते पढते डाक बाबू के आंख में भी आंसू आ जाये. डाकिया एक ऐसा इंसान था जो सब के घर कि बात जानता था. सबके दुख पहचानता था. घरावलो से जादा वो खुश होता था सबकी ख़ुशी में.
पुराने जमाने के पत्र
पुराने जमाने मे राजा महाराजाओं के जमाने मे ऐसे डाक बाबू नही होते थे. राजा महाराजा किसी बात को कही पोहचणा हो तो कबुतर का उपयोग करते थे. अपना पत्र लिखकर कबुतर के गले में एक छोटी सी दोरी से बांध कर उडा देते थे, वो कबुतर बराबर उसी लोगो तक पत्र पोहचा देता था. और वो शक्स उसका उत्तर भी उसी कबुतर द्वारा उसी तरह भेज देता था.
पत्र लिखने का तरीका
पत्र लिखने का एक अलग तरीका होता था, आज भी हे. पहले उपर तारीख होती हे, फिर प्रेम भाव से एक पुरी लाईन होती हे, प्रिय शब्द से शुरुवात, करते हे, पहले जिसको खत लिखा हे उसकी खुश हाली पूछेंगे फिर अपनी बाते करेंगे कितींनी भी तकलीफ हो कितनी भी परेशानी हो, लेकीन खत में सब कुछ सही चल रहा है. यही बताते थे. इसलिये कि अपना कोई अपने से दूर है| और उसे इस बात कि फिकर न हो इसलिये. सब खुशहाल हे कह कर अपना पत्र पूरा करते है.
सारांश
आज यही पत्र कही गुम हो गया है, उसकी जगह डिजिटल चीज़ों ने ले ली है| नये जमाने के साथ पत्र की संकल्पना भी बदल गयी.