प्रस्तावना :
भारत देश के प्रमुख तीर्थ स्थान प्रयागराज, नाशिक, हरिद्वार, उज्जैन आदि तीर्थों पर जानें से हमारी आत्मा पवित्र होती है | इन चार स्थानों पर कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है | कुंभ के मेले में स्नान करने के लिये भारत देश के सभी क्षेत्रों से लोग आते हैं |
आदि शंकराचार्य जी का मानना था की समुद्र मंथन के समय जो अमृत प्राप्त हुआ था उस अमृत की एक बूँद इन्हीं चार तीर्थों पर गिरी थी | जिससे इन चार तीर्थों की नदियाँ पवित्र हो गई थी | कुंभ के मेले में जो व्यक्ति स्नान करता है उसके सभी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं |
कुंभ का मेला कब लगता है :
कुंभ का मेला १२ साल में लगता है | कहा जाता है की ३६ साल में कुंभ के मेले में अमृत की बूँद गिरती है | १२ सालों का एक युग माना जाता है | कुंभ मेला विश्व के किसी भी धर्मसभा की तुलना में अधिक लोगों को आकर्षित करती है |
कुंभ का मेला हिंदुओं की सामूहिक इच्छा को दर्शाता है | यह अत्यधिक मूल्यों में एक स्थायी विश्वास का प्रतिनिधित्व करता है | जब लोग कुंभ के मेले में जाते हैं तो जाति, पंथ, भाषा सभी भेदों को भूल जाते हैं | वह एक सार्वभौमिक आत्मा का हिस्सा बन जाते हैं |
प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नाशिक के पर्व स्थल जहाँ करोड़ों श्रद्धालु के मेले में स्नान करते हैं | इन चारो तीर्थ स्थानों पर प्रति १२वें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ उत्सवों के बिच ६ वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है | २०१३ का कुंभ मेला प्रयागराज में हुआ |
मकर सक्रांति के दिन होने वाले इस योग को “कुंभ स्नान योग” कहा जाता है | इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है | क्योंकि माना जाता है की इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं |
हमारे देश में प्रमुख चार कुंभ के मेले आयोजन किये जाते हैं | इन चारो कुंभों में से प्रयागराज का कुंभ मेला सबसे श्रेष्ठ माना जाता है | ऐसा कहा जाता है की जब सिंह राशि पर बृहस्पति सूर्य और चंद्रमा आते हैं तब अमावस्या के दिन नाशिक में कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है |
सूर्य मेष राशि एवं बृहस्पति कुंभ राशि पर हो तब हरिद्वार में कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है | तथा जब वृश्चिक राशि पर सूर्य बृहस्पति और चंद्रमा हो तब अमावस्या के दिन उज्जैन में कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है |