प्रस्तावन:
कस्तूरबा मोहनचद करमचंद गाँधी. ये अपने गांधीजी की पत्नी का नाम हे. हमें ज्यादा करके गांधीजी के बारेमे हे सुनते थे. लेकिन हम आज कस्तूरबा जी के बारेमे सुनेंगे.
गांधीजी के साथ का उनका पहला सफर
कस्तृरबा गांधीजी के पिता का नाम गोकुलदास माखजी हे. वो एक आमिर व्यापारी थे. कस्तूरबा जी की शादी १३ साल की उम्र में हुई थी. जब उनकी शादी हुई थी तब वो पढ़ी लिखी नहीं थी, निरक्षर थी. गांधीजी ने उन्हें पढ़ाया और लिखाया और एक काबिल व्यक्ति बनाया.
तब स्त्रियोंको घर से बहार निकलना मुश्किल था ऐसे समाज में अपनी पत्नी को उन्होने पढ़ना लिखाया सिखाया.
वो के धार्मिक स्त्री थी. मगर गांधीजी के जाती धर्म के कार्यक्रम उनका साथ दिया.
उनके बच्चे
जब कस्तूरबाजी को १८८८ में पहला बच्चा हुआ तब गांधीजी इंग्लैंड में अपनी पढाई पूरी कर रहे थे, और यहाँ कस्तूरबा जीने अकेले अपने पहले बच्चे को जिसका नाम हीरालाल था अकेलही उनको बड़ा किया था.
उनके चार बच्चे थे जिनका नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास, और देवदास था.
गांधीजी के साथ उनका सफर
अपनी पढाई पूरी करके गांधीजी जब वापस आये, तो उन्हें जल्दी ही साउथ आफ्रिका जाना पड़ा. वो साथ में कस्तूरबा जी को भी साथ में लेके गए थे. हमेशा उन्होंने गांधीजी के हर काम में उन्होंने अपना योगदान दिया हे.
किसानो को हक्क दिलाने के लिए जब नीळ चळवळ शुरू हुई तब कस्तूरबा जी उनके साथ खडी थी. इस संग्राम में उनका रेहान सेहन गांधीजी की तरह साधा साधारण था. उन्होंने उनके चले जाओ के आंदोलन में भी साथ दिया. और सूती मलमली रंगबिरंगी कपड़ो का बहिष्कार करके खादी को अपनाया.
दक्षिण अफ्रीका का सफर
जब गांधीजी ने देखा की दक्षिण अफ्रीका में हिन्दुओ को तकलीफ हे तो उनोने वह बी अपना आंदोलन शुरू किया जिसमे उनको जेल भेजा गया. तब कस्तूरबा जी ने भी उनकी जगह रहकर जगा संभाली.
उनोने भी कड़ा भाषण दिया तो अंग्रेजोने उन भी गिरफ्तार करवा लिया. लेकिन वह का खाना बिलकुल भी खाने लायक नहीं था. तो उन्होंने उन्हें फलाहार देने की बात की तो अंग्रेजोने उनकी बात को अनसुना कर दिया तो उन्होने अनषन का निर्णय लिया हे सब देख कर अंग्रेंजोको उनके इस निर्णय पर झुकना पड़ा.
गांधीजी की परछाई
कस्तूरबा जी हमेशा एक परछाई की तरह उनके साथ खड़ी थी. महात्मा जी अनेक साथ उनके हर आंदोलन में हमेशा उनके साथ थी. महात्माजी के जीवन इतने करीब से सिर्फ कस्तूरबा जी ने देखा हे. और एक सच्ची पत्नी की तरह उनका साथ भी दिया हे.
कस्तृरबा जी की मृत्यु
९ ऑगस्ट १९४२ में मुंबई के शिवजी पार्क में गांधीजी का कस्तूरबा जी के साथ वह भाषण था, लेकिन कस्तूरबा जी को दरवाजे पर ही गिरफ्तार कर लिया था.
दो दिन बाद उनको पुणे के आगा खाँ महल नमक जेल में रखा गया. जहा गांधीजी पहलेसे ही बंदिस्त थे. वह कस्तृरबा जी की तबियत बोहोत ख़राब हुई.महादेव देसाई ने जब अपने प्राण त्याग दिए थे.
तब ये बात कस्तूरबा जी आस्वस्थ हो गयी, और एक ही बात बोलती थी महादेव क्यों गए, मुझे जाना चाहिए था. वो उनको समाधी पे हमेशा दिया जलने जाती थी.
और आखिर में २२ फेब्रुवरी १९४४ में उनकी मृत्यु हुई.
निष्कर्ष:
ऐसी महिला जो घर से बहार निकलना नहीं जानती थी वो देश के लिए अपना बलिदान दे गयी.