कबीर दास का कार्यकाल

संत कबीरदास जी पर निबंध – पढ़े यहाँ Essay On Kabir In Hindi

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By hindiscreen

प्रस्तावना :

संत कबीर दस जी एक महान कवी, क्रांतिकारी एवं समाज सुधारक भी थे | संत कबीरदास जी संत कबीरदास जी १५वीं सदी के एक महान कवी,  क्रांतिकारी एवं समाज सुधारक भी थे |

हिंदी साहित्य के शिरोमणि कबीर दास जी का नाम छोटी की कवियों में आता है | संत कबीरदास जी समाज से अंधविश्वासों आडंबरों को दूर किये और अपना पूरा जीवन लोगों के कल्याण के लिए ही लगा दिए |

kabir daas संत कबीरदास जी का जन्म १४५६ ई. के आसपास माना जाता है | इनके जन्म से लेकर अनेक मतभेद है | संत कबीरदास जी स्वामी रामानंद के आशीर्वाद से एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ में हुआ था | समाज के डर के कारण वह नवजात बच्चे को ‘लहरतारा’ नामक तालाब के पास फेंक आयी थी |

निरु और नीमा नाम के एक निर्धन जुलाहा दंपत्ति ने उन्हें उठाकर अपने घर ले गए और उनका पालन-पोषण किये | संत कबीरदास जी शिक्षा से असमर्थ रहे |

कबीर दास जी जैसे ही बड़े हुए वे कपडे बुनने का काम शुरू किये | कबीर दास जी जगह-जगह घूमकर ज्ञान गुरूओं से देश में यात्रा करके सभी धर्मों का अध्ययन किये | वे अपना ज्ञान लोगों तक मौखिक रुप से कविता के माध्यम से लोगों को अनुभव बताये |

kabir कबीर दास जी का विवाह एक लोई नामक कन्या से हुआ | उनके एक पुत्र कमाल और एक पुत्री है जिसका नाम कमाली है |

कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं में सधुक्कड़ी भाषा का इस्तेमाल करते थे | कबीर के अनुयाई कबीर को बाल ब्रह्मचारी और वैरागी मानते हैं | इस पंथ के अनुसार कमाल उनका शिष्य था और कमाली उनकी शिष्या थी |

कबीर दास जी की सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी है | इनके भाषा में सभी बोलियों के शब्द सम्मिलित है | राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी ब्रजभाषा के शब्दों की बहुलता है |

कृतियां :

कबीर दासधर्मदास जी उनकी वाणियों का संग्रह “बीजक” नाम के ग्रंथ में किया जिसके तीन भाग हैं –  साखी , सबद, और रमैनी |

कबीर दास जी पढ़े-लिखे नहीं थे – ‘मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ | कबीर दास जी स्वंय कोई ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से भाखे और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया | कबीर दास जी निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे | उनका मत था की ईश्वर पुरे संसार में व्याप्त है |

कबीर दास का जन्मस्वामी रामानंद पंडित जो कशी के जाने माने थे | कबीर दास को मालूम हुआ की स्वामी जी रोज गंगाघाट स्नान के लिए आते हैं | कबीर दास जाकर गंगाघाट की सीढ़ियों पर लेते यथे तभी स्वामी रामानंद जी “उठ भाई राम” राम राम कहो’ यह बोलकर चले गए |

यह बात जब  कबीर दास रामानंद जी को बताये तो स्वामी रामानंद लग्न और श्रद्धा से बहुत प्रभावित कबीर दास को शिक्षा देने का निर्णय लिए इसके बाद कबीर दास अपने शिक्षा का प्रचार किये |

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