प्रस्तावना:
‘बुद्ध पूर्णिमा’ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लोगों का सबसे बड़ा त्यौहार है | इसे बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है | हिंदू पंचांग के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा वैसाख माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है | इसलिए इसे वैशाख पूर्णिमा भी कहा जाता है |
बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का प्रमुख त्यौहार है | बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था | इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था |
गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी में ५६३ ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर वैशाखी पूर्णिमा के दिन हुआ था | भगवान बुद्ध के माता का नाम महामाया था | उनकी माँ कोसल वंश की एक राजकुमारी थीं |
भगवान बुद्ध के जन्म के पश्चात उनकी माता की मृत्यु हो गई थी | उसके बाद उनका पालन-पोषण मौसी महाप्रजापति गौतमी के हाथों हुआ | इसलिए उन्हें “गौतम” के नाम से जाना जाता है |
गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था | सिद्धार्थ ने अपने गुरु विश्वमित्र के पास वेद और उपनिषद तो पढ़े ही, राजकाल और युद्ध विद्या की भी शिक्षा लिए | महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख पूर्णिमा को हुआ था और इसी दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था |
महात्मा बुद्ध को विष्णु जी का २३वाँ अवतार माना जाता है | गौतम बुद्ध के उपदेश का भाव यह था की हिंसा का उत्तर अहिंसा, दया और प्रेम से देना चाहिए |
सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की कन्या से हुआ उनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल था | वे नवजात शिशु और अपनी धर्मपत्नी को त्याग, और राजपाठ का मोह त्यागकर संसार को दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य देवी ज्ञान की खोज में रात के समय वन की ओर चले गए |
वर्षों को कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के निचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए | बोधगया यह स्थान बिहार के हिंदू पितृ तीर्थ ‘गया’ में स्थित है |
बुद्ध के प्रथम गुरु आलार कलाम थे, जिनसे उन्होंने संन्यास काल में शिक्षा प्राप्त किये | ३५ वर्ष की आयु में वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ पीपल वृक्ष के निचे ध्यानस्थ थे | बुद्ध ने बोधगया में निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या किये |
ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात महात्मा गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ, काशी अथवा वाराणसी के १० किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है | जिसे “धर्म चक्र प्रवर्तन” का नाम दिया जाता है |
बुद्ध के प्रचार से भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी | बड़े-बड़े राजा भी उनके पास आने लगे शुद्धोधन और राहुल ने भी बौद्ध धर्म की दीक्षा ली |
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