दोस्तों बचपन होता ही ऐसा है, जो लोग बड़े होकर याद करते हैं | छोटे पर की गई मस्तियाँ और दादा दादी की कहानियाँ सुनना, स्कूल जाना, दोस्तों के साथ मस्ती करना तथा खेलने कूदने और खाने-पिने बड़ा ही आनंद आता था |
प्रस्तावना :
मेरा बचपन का दिन बहुत ही सुहावना और किसी जन्नत से कम नहीं था |मेरा बचपन गाँव में बिता है, मैं बचपन में बहुत ही शरारती हुआ करता था |मेरा बचपन का वो दिन जब मैं दादा-दादी की कहानी सुनकर सोता था | सुबह होते ही, मैं घर में बड़ों का पैर छूता था |
दादा-दादी के साथ मंदिर जाता था, मंदिर से आते ही पापा प्यार से गले लगते थे, और माँ प्यार खाना खिलाती थी |बचपन में मेरा दुलार सबसे अधिक था | क्योंकि मैं घर में सबसे छोटा था | दादा हर रोज शाम को सैर कराने ले जाते थे |
मेरा बचपन गाँव में 
गर्मी की छुट्टियों में, मैं ईंट फेंककर कच्चे आम तोड़ता था, कांटेदार पेड़ पर चढ़कर बेर तोड़ता था | कभी दूसरों के खेत में जाकर चने के झाड़ को उखाड़ लेता, तो किसी के मटर तोड़ लेता तो किसी का गन्ना उखाड़ लेता था और लेकर अपनें घर में छुप जाता था |
जब खेत का मालिक घर आकर माँ से मेरी शिकायत करता था, तब माँ मुझे डांटती थी |और मैं रोता था और मेरे दोस्त और गाँव के लोग मुझे देखकर हँसते थे | दोस्तों सच में मेरा बचपन बहुत ही आनंदमय था |
बचपन की मस्ती दोस्तों के साथ 
मैं बचपन में बहुत ही नटखट था |दोस्तों के स्थ गुल्ली-डंडा, पकड़ा-पकड़ी, लप्पा-छुप्पी खेलना उनके साथ घूमनें जाना जाता था, और बात-बात में उनसे झगड़ता भी था, फिर दो मिनट में उनसे फिर से दोस्ती कर लेता था, क्योंकि दोस्तों के बिना रहा नहीं जाता था |
बारिश के मौसम में पानी मैं झूमकर नहाता और बारिश वाला कविता भी गया करता था | कागज का नाव बनाकर छोड़ना, और फिर नाव को खोजना जब वह पानी के साथ बह जाता था |
चिड़िया उड़ तोता उड़ खेलते थे, यदि कोई भी गलती से गधा उड़ा देता था, तो उसकी जम के पिटाई होती थी | माँ बुलाती थी तब भी मैं खेलने के चक्कर में नहीं जाता था, तब माँ डंडा लेकर आती थी |मेरी स्कूल की यादें.
गाँव की स्कूल में बस एक ही शिक्षक थे |वह सभी लोगों को गृहकार्य के साथ कुछ पाठ याद करने के लिए देते थे | पाठ याद नहीं होनें पर हमें दंडित करते थे, एक दिन मुझे भी मुर्गा बना कर दंड दिए थे | तब मैं रो रहा था और मेरे दोस्त मुझे देखकर हँस रहे थे |तब मैं स्कूल नहीं जाता था और माँ मारते हुए स्कूल भेजती थी |
निष्कर्ष :
सच में मेरा बचपन किसी जन्नत से कम नहीं था | आज सब दोस्त याद आते हैं, उनके साथ वो बिताये हुए बचपन बड़े होने पर यादगार बन गये हैं |
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