प्रस्तावना :
‘नर’ संज्ञा का सामान्य अर्थ होता है ‘पुरुष; यदि सफलता मंजिल है तो असफलता वह रास्ता है जो इस मंजिल तक पहुँचाता है | मनुष्य भगवान की एक ऐसी कृति मानी जाती है, की भगवान ने मनुष्य को मन दिया है जिससे मनुष्य अपने विचारों से किसी बात को सोंच समझ सकता है |
मनुष्य जब कोई भी कार्य करता है तो उसे असफलताओं का सामना भी करना पड़ता है | जिसके कारण कोई निराश हो जाता है तो कोई जीवन में दुबारा उस कार्य को करने की कोशिश भी नहीं करता है |
नर शब्द का अर्थ :
नर का मतलब पुरुष जो सब कुछ कर पाने में समर्थ प्राणी है | यदि पुरुष किसी कारण वश निराश होकर बैठ जाता है तो वास्तव में यह बड़े ही शर्म की बात है | क्योंकि हार और जीत तो मनुष्य के जीवन के साथ लगा हुआ होता है |
मानसिक बल
किसी भी मनुष्य को निराशा की भावना मन में उस समय आता है, जब वह अपनी किसी भी परिस्थितियों का संघर्स करते-करते थक जाता है | तब उसके मन में ऐसा भावना आने लगता है, की अब वह आगे नहीं बढ़ पायेगा परंतु किसी भी पुरुष के मन में निराशा का भाव नहीं लाना चाहिए क्योंकि इसलिए कहा भी गया है कि ‘नर हो, न निराश करो मन को |
नर हो न निराश करो मन को,
कुछ काम करो कुछ काम करो,
जग में रहकर कुछ नाम करो,
समझो न अलभ्य किसी धन को,
नर हो न निराश करो मन को |
किसी भी असफलता से निराश न होना
‘नर हो न निराश करो मन को’ इस पंक्ति को सुनते हैं तो ऐसा लगता है की आज के कुछ लोग छोटी-मोटी नाकामयाबी से निराश होकर जीवन से हार मान लेते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं | लेकिन कुछ लोग बड़े से बड़े मुसीबत का सामना करते हुए एक न एक दिन कामयाब हो जाते हैं |
जितने भी महान लोग जीवन में सफल हुए हैं उन्होंने बहुत सी असफलताओं का सामना किया है | यदि मनुष्य अपने मन को निराश कर लिया तो वह कभी अपने जीवन में सफल नहीं हो पाएगा |
निष्कर्ष :
एक बार मन में निराशा घेर लिया तो वह कभी भी जीवन में सफल नहीं होता | क्योंकि मनुष्य की सफलता और असफलता उसके मन स ही निश्चित होती है | यदि असफलता का ‘उपाय’ आत्महत्या ही होता, तो दुनिया में कोई भी सफल व्यक्ति जीवित नहीं होता | मनुष्य असफलताओं को झेलते हुए अपने जीवन में इतना आगे बढ़ता है की हर कोई उसकी तारीफ करता है |
सफल व्यक्ति अपने जीवन में कई बार असफल भी हुए हैं और तरह-तरह के कष्ट उठाए हैं | इसलिए मनुष्य को कभी अपने मन को निराश नहीं करना चाहिए |