प्रस्तावना:
हमारे देश में अलग-अलग जाती और धर्म के लोग रहते है | हिन्दू धर्म की जाती प्रथा यह सबसे मुख्य वैशिष्ट्य है | जाती प्रथा में लोगो में भेदभाव और शरीर के वर्ण के कारण किया जाता है |
जाती भेद जन्म से किया जाता है | जब कोई भी व्यक्ति जन्म लेता है तो वो जाती के आधार पर और व्यक्ति के जन्म के समय ही निश्चित होता है की वो समाज के कौनसे स्तर में सम्बंधित है |
जाती प्रथा का अर्थ –
जाती प्रथा को वर्ण और जाती के नाम से भी जाना जाता है | जिसे किसी भी व्यक्ति के जन्म के आधार पर समझा जाता है | हर व्यक्ति की जात यह किसी से बिना पूछे दी जाती है |
जातियों का विभाजन
हमारे देश में जाति व्यवस्था के लिए लोगो को चार वर्ग में विभाजित किया है – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र इत्यादि, वर्ग में बाटा गया है |
ब्राह्मण वर्ग में पुजारी शिक्षक और विद्वान यह सबसे ऊपर होते है | उसके बाद क्षत्रिय वर्ग में योद्धा और शासक लोगो का समावेश होता है |
यह ब्राह्मणों से जुड़े होते है, जो अपने द्वारा शासन चलाते है | वैश्य वर्ग में किसान और व्यापारी लोग आते है | उनका कार्य पशुपालन, व्यापार और उद्योगों को निश्चित करना होता है |
सबसे चौथे वर्ग में मजदूर लोगो का समावेश होता है | इत्यादि स वर्ग में सबसे गरीब और नौकर लोग आते है | इत्यादि न लोगो के पास ज्यादा पात्रता नही होती है |
जाती व्यवस्था की शुरुवात
देश में जाति व्यवस्था की शुरुआत सबसे पहले १५०० ईसा पूर्व आर्यों के आने से हुई थी | आर्यों ने सभी लोगो के ऊपर नियंत्रण रखने के लिए और जाती व्यवस्था अच्छे से चालने के लिए की थी |
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार इत्यादि स वर्ण भेद की शुरुआत भगवान ब्रह्मा के द्वारा निर्मित की गयी है |
जाती व्यवस्था में बदलाव
देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद हमारे देश के भारतीय संविधान मे जाती व्यवस्था के भेदभाव पर प्रतिबंध लगाया है | देश में अनुसूचित जाती और जमाती को और छोटे वर्ग के लोगो के लिए कोटा प्रणाली लागु की है |
अपने देश का संविधान डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जिन्होंने लिखा वो भी एक दलित समाज के थे | लेकिन उन्होंने अपने देश और सामाजिक न्याय के लिए भारत के इत्यादि तिहास में एक बहुत बड़ा कदम उठाया है |
निष्कर्ष:
देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद इत्यादि जाती व्यवस्था में बहुत सारे बदलाव हुए | समाज और देश में सभी लोगो को समान रूप से अधिकार मिलने लगे |
देश में नगरीकरण, शिक्षा और स्त्री जागरूकता इत्यादि को प्राधान्य मिलने लगा और जाती भेद का बंधन कमजोर पड़ने लगा |
जब जाती भेद को दुर करेंगे तभी एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण हो सकता है | इत्यादि सलिए किसी व्यक्ति को धर्म, जाती और पंथ में भेदभाव नही करना चाहिए |