प्रस्तावना :
हमारे भारतीय संस्कृति में गुरु पूर्णिमा यह पर्व बहुत ही प्रशिद्ध पर्व के रूप में मनाया जाता है| इस त्यौहार को भारतीय हिन्दू धर्म तथा बौद्ध धर्म के लोग जो इस पर्व में रूचि रखते है वे लोग बड़े ही हर्शोल्लास के साथ मानते हैं| यह त्यौहार भारतीय हिदू धर्म के पत्रिका(कलेंडर) के अनुसार श्रवण के बाद “आषाढ़ महीने के पूर्णिमा के दिन” मनाया जाता हैं|
गुरु
गुरु वो ही होता हैं, जो प्रत्येक परिस्थिति में बिना डगमगाए अपने शिष्य को उचित ज्ञान प्रदान करता हैं| अतः वो कभी किसी शिष्य के असफलता को देखकर निराश ना हो इसके विपरीत उसे और अच्छा करने के लिए / उसे और मेहनत करने के लिए प्रेरित करता हैं|
शिष्य
शिष्य वो ही होता हैं, जो अपने गुरु के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होता हैं| उनके बताये गये निर्देश को अटल समझते हुए, उनके आज्ञा का पालन करता है और उसके किये वो निष्ठावान होता हैं |
गुरु पूर्णिमा के पर्व का महत्व
गुरु पूर्णिमा शिष्य अपने गुरु के सम्मान हेतु गुरु के प्रति पूर्ण रूप से सपर्पित होता हैं| पुराणों की मान्यता के अनुसार जिस प्रकार शिष्य अपने गुरु के ओर पूर्ण रूप से समर्पित होकर अपने गुरु का आदर-सम्मान और उन्हें नमन करते है, उसी प्रकार से गुरु अपने शिष्य के प्रति प्रेम पूर्वक उनके शुभ-चिन्तक के रूप में उन्हें अपनी दीक्षा प्रदान करते है|
अतः गुरु का हमारे जीवन में अमूल्य महत्व हैं| “गु-रु” इस सब्द का अर्थ यह होता हैं, की ( गु ) का अर्थ है अँधेरा अर्थात ( अज्ञान ) और ( रु ) का अर्थ होता है प्रकाश अर्थात ( ज्ञान ) गुरु हमारे जीवन में जो अज्ञानता का अन्धकार होता हैं, उसे हमारे जीवन से निष्कासित करके, हमारे जीवन में ज्ञान का प्रकाश भर देते हैं| जो की, हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता हैं|
गुरु पूर्णिमा मनाने की विधि
हमारे भारत देश में गुरु पूर्णिमा यह शुभ दिन हिन्दू पत्रिका के अषाढ़ महीने पूर्णिमा के दिन पर मनाया जाता हैं, इस दिन शिष्य अपने गुरु को सम्मान देते हुए अपने गुरुओं की पूजा अर्चना करते है|
इस समय आश्रमों, विद्यालय तथा मोहल्ले में बहुत भव्य रूप से गुरु पूर्णिमा हेतु मनोरंक कार्य-क्रम(अध्यात्मिक, नृत्य, गायन, नाट्य, सांस्कृतिक साहित्य) का आयोजन भी करते है, अर्थात अपने गुरुजनों को सम्मान देते हुए यह आशीर्वाद मांगते है की उनके जीवन से कभी गुरु का साया ना हटे और उनके जीवन में ज्ञान रूपी प्रकाश का समावेश होता रहे|
निष्कर्ष :
वर्तमान में भी भारत में कई एसे स्थान है| जहाँ पर गुरुओं को ईश्वर से अधिक सम्मान देते है| और उनके पूजा अर्चना करते है कारण की एक मात्र गुरु ही है, जो एक शिष्य के अंधकार रूपी जीवन में प्रकाश के समावेश करता है | और हमारे समपूर्ण जीवन में हमारे सर्वप्रथम गुरु हमारे माता-पिता ही होते ही| अर्थात हमें पहली शिक्षा हमारे माता-पिता द्वारा ही प्राप्त होती हैं| और निष्कर्ष: हमे अपने गुरु की अर्थात अपने माता-पिता की निष्ठा पूर्वक सम्मान करना चाहिए
अतः “जिस प्रकार पेड़ के बिना पत्ता नहीं होता, उसी प्रकार गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता! ” और ज्ञान के बिना हमारा सम्पूर्ण जीवन एक मुर्ख पशु के सामान होता हैं|